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पिछले दिनों अपनी लाइब्रेरी में किताबें खोजने के दौरान एक शीर्षक देख कर अचानक रुक गया और उस किताब को झट से उठा लिया। आम तौर पर मैं किताबों को चुनने में समय लेता हूँ लेकिन इस बार ऐसा नहीं था। इस बात के दो कारण हैं। पहला यह कि किताबों के लेखक मशहूर और पसंदीदा कवि राजेश जोशी जी हैं और दूसरा उसका शीर्षक “नींद किस चिड़िया का नाम है?” शीर्षक सुनते ही हमें अपनी ओर आकर्षित करता है। मैंने किताब का शीर्षक सुनते ही किताब उठा ली।

इस किताब को तक्षशिला प्रकाशन द्वारा जुगनू छाप के अंतर्गत प्रकाशित किया गया है। यह हिंदी के प्रसिद्ध कवि राजेश जोशी जी का कविता संग्रह है। जिसके चित्र भार्गव कुलकर्णी ने बनाये हैं। इस संग्रह में छोटी बड़ी मिलाकर कुछ 20 कविताएं हैं इसके अलावा अगर शीर्षक कविता को जोड़ें जो बैक कवर पर है तो 21 कविताएं हैं।

राजेश जोशी जी की कविताओं के अलावा हमने नाटक, अनुवाद, डायरी आदि पढ़े हैं लेकिन बच्चों के लिए कविता लिखते हुए इस संग्रह में उन्होंने नई पूरी ताजी भाषा और बिम्ब रचे हैं, इस संग्रह की उपमाओं में नयापन और ताजगी है। इस छोटे से कविता संग्रह को पढ़ते हुए हमें उनके आपार कविता संसार से परिचय होता है। इस संग्रह की कविताएं बहुत साधारण जनजीवन के मुद्दों से होते हुए भी पढ़ते समय आश्चर्य में डालती हैं जिसका कारण जोशी जी के बिम्ब और शब्दों को बरतने की शैली है। संग्रह की सभी कविताएं जीवन के छोटे छोटे किरदारों से होते हुए हम तक पहुंचती हैं और पढ़ते हुए हुए हम अनुभव करते हैं कि रोज हमारा इन किरदारों से पाला तो पड़ता है लेकिन हमें किरदारों को देखने की ये दृष्टि पहली बार जोशी जी कविताओं से मिली है। इस संग्रह की पहली ही कविता आज के बाज़ारवाद को बहुत साधारण शब्दों में दर्शाती है, कविता है – अतिरिक्त चीजों की माया

अतिरिक्त हमारे मन की कमज़ोरी को पहचानता है।

लालच धीरे-धीरे पाँव पसारता है

एक अतिरिक्त दूसरे अतिरिक्त को बुलाता है

और दूसरा अतिरिक्त तीसरे अतिरिक्त के लिए जगह बनाता है

एक दिन सारी जगह अतिरिक्तों से भर जाती है।

इस कविता के माध्यम से जोशी जी ने बाज़ार जाने पर मुफ़्त या एक के साथ एक फ्री अथवा सेल के माध्यम से जीवन में प्रवेश कर जाने वाली अतिरिक्त चीजों की तरफ ध्यान आकर्षित किया है। इस कविता की आखिर लाइन तो सोचने पर मजबूर करती है ‘एक दिन सारी जगह अतिरिक़्तों से भर जाती है’ कविता के लिए चित्र बहुत सुंदर और साधारण तरीकों से बनाये गए हैं जो कविता पढ़ते हुए अनायास ही हमारी कविता को पूरी करता है।

इस कविता संग्रह में वैसे तो सभी कविताएं एक से बढ़ कर एक हैं लेकिन इसमें एक कविता और भी ली गई है जो हमने बहुत पहले पढ़ी जिसके वजह से राजेश जी हमारे पसंदीदा कवि हैं। वो कविता है – बच्चे काम पर जा रहे हैं।

यह कविता नहीं बल्कि भाषा का जादू है जो समाज की कड़वी बातों पर जोशी जी की टीस को दर्शाता है। इस कविता की एक एक पंक्ति हमारे अंतर्मन को झकझोर कर रख देती है जैसे,

बच्चे काम पर जा रहे हैं

हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह

भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना

लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह

काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे ?

यह पंक्तियां पढ़ते हुए पाठक के मन में एक चित्र बनाती हैं जो महीनों तक पाठक के अचेतन में रह जाती हैं और कहीं भी, कुछ काम करते कूड़ा बीनते बच्चे दिखने पर कौंध जाती हैं कि क्यों काम पर जाते हैं बच्चे। इसी कविता के आखिर की पंक्ति है जो एक नया सवाल गढ़ती है कि,

क्या सारे मैदान,सारे बगीचे और घरों के आंगन खत्म हो गए हैं एकाएक, तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में?

कहने को तो ये सम्वेदनशील पंक्तियां हैं लेकिन क्या ये हमारे और हमारे समाज पर एक यक्ष प्रश्न खड़ा नहीं करतीं? यह सोचने की बात है मुझे पढ़ते हुए बार बार विचार आया कि क्या एक समाज के रूप में ये हमारी हार नहीं है कि बच्चे काम पर जा रहे हैं खैर, यह “खैर” एक टीस है जो इतिहास में दर्ज होगी।

इसके साथ ही कुछ कविताएं बहुत ही प्यारी और साधारण होते हुए भी मन में घर कर जाती हैं जैसे ‘चीटियां’ शीर्षक की कविता, इस पूरे संग्रह को पढ़ते हुए राजेश जी के जीवों से लगाव और प्रकृति को सूक्ष्मता से देखने का नजरिया उजागर होता है, इसके साथ ही कविता संग्रह पढ़ते हुए ये लगा कि जोशी जी चींटियों से बहुत मुतासिर हैं क्योंकि इस ही संग्रह में अलग अलग कविता में चींटियों के माध्यम से ढेर सारी बातें की हैं। हां अगर बात करें चींटी कविता की तो इसमें कवि ने बहुत बारीकी से ये बताने की कोशिश की है कि हम कितना कम जानते हैं प्रकृति और बोलने लगते हैं। इसका एक उदाहरण चींटी के माध्यम से जोशी जी ने दिया है जिसमें कहते हैं, चिउति की तरह मसल डालूंगा मुहावरे, उसके छोटे आकार और कमजोर होने को नहीं, हमारे डर को ज्यादा व्यक्त करते हैं।

सम्वेदनशील होने के मामले में यह संग्रह बहुत आगे है इसे पढ़ के हमें पता चलता है कि राजेश जोशी जी पेड़ों से टूट रहे पत्तों से लेकर, ट्रैप में फंसे चूहे तक का दर्द बहुत आसानी से सुनते ही नहीं हैं, अपितु लिखते भी हैं, और ऐसा क्यों न हो कवि होने का धर्म भी यही है।

अगर बात करें तो इस संग्रह की एक एक कविता पर लंबी बात हो सकती है लेकिन चूहे कविता के माध्यम से जो संवेदनशीलता और दर्द दिखाया है वो कमाल है साथ ही इसे आम जीवन से जोड़ना और मनुष्यों सी तुलना करते हुए कहना कि, उनकी बहुत सारी मूर्खताएं हमसे मिलती जुलती हैं। मानव जीवन को चूहे के माध्यम से परिभाषित करती हैं।

कवि ने संग्रह में सरल और स्पष्ट भाषा का प्रयोग किया है साथ ही अलग अलग बोलियों के बहुत सारे शब्द भी शामिल करता है जैसे, चिउति, पहुना आदि।

आदि से ही इस संग्रह की महत्वपूर्ण कविता इत्यादि की याद आती है जिसमें इत्यादि जैसे शब्द से बड़े सामाजिक और राजनैतिक मुद्दे उठाए गए हैं।

किताब की छपाई आकर्षक और चित्र मोहक हैं जो कविता को मन में बसने को काफी हैं। भार्गव कुलकर्णी के बनाये चित्रों ने कविता को स्वर दिया है। चित्रों को देखते हुए ऐसा लगता है कि, चित्र कविताओं का हाथ पकड़ के साथ-साथ चलने और कई बार आगे चलने का प्रयास करते हैं और यह कहना बिलकुल गलत नहीं होगा कि इस प्रयास में सफल भी होते हैं। मसलन, “बच्चे काम पर जा रहे हैं”

कविता के चित्रों को अगर देखें तो उन्हें देख कर अजीब सी उलझन होती है, पूरे चित्र का बेस काला रंग का है, काम पर जाते बच्चों के चित्र में सूरज तो निकला है लेकिन काले रंग का, काले रंग का सूरज तुरंत ही सोचने पर मजबूर करता है और कविता की भाषा में बात करता है। उसी चित्र में बच्चों के सर के ठीक ऊपर एक पहाड़ सा है जो काले रंग से लगभग ढका हुआ है लेकिन जहाँ जहाँ से खुला है वहां से बच्चों के अलग अलग तरह के खिलौने झलक रहे हैं। जिनको देख कर हम बिना सोचे नहीं रह पाते।

बाकी चित्रों में चटख रंगों का प्रयोग किया गया है, नीला, पीला, लाल जैसे रंग आँखों को बरबस अपनी तरफ खींचते हैं। लगभग चित्रों में नीला और आसमानी रंग बेस की तरह दिखता है। कुल मिला कर रंगों की वजह से चित्र निखर कर आ रहे हैं।

सारी ही कविताओं को चित्रों ने आगे बढाया है अथवा कोशिश की है, चित्रों में डिटेलिंग का ख़ास ख्याल रखा गया है चाहे वो रात की काली छाया हो या अलग चित्रों में छाया हो। चूहे वाली कविता में ट्रैप में फंसा चूहा, एक गहरी टीस पैदा करता है तो, “इत्यादि” कविता में आम आदमी को बिना चेहरे के दिखाया जाना और उनके धर्म और पोशाकों से दिखाया जाना सोचने पर मजबूर करता है और वह चित्र इस बात को मजबूती से कह पाता है कि इत्यादि लोग कौन हैं?… किसी को इस बात से मतलब नहीं है लेकिन सारे काम उन्हीं से हो रहे हैं।

टाइटल कविता को बैक कवर पर छापना नया प्रयोग है जो ध्यान आकर्षित करता है। शीर्षक कविता कमाल की है जो निरंतर सोचने को मजबूर करती है।

और अंत में शीर्षक कविता आप सब के लिए,

नींद

तकिये में

कपास का एक पेड़

कपास के फूल पर

चिड़िया नहीं आती

नींद किस चिड़िया का नाम है।

When Pictures Speak a Thousand Words

We often say that children’s literature is for everyone- it offers the imagination, the narrative and the richness that can appeal to readers of all…

Tuhina Sharma Parag Reads 23rd April 2024 English

पानी की बात

1993 से हर साल 22 मार्च विश्व जल दिवस के रूप में मनाया जाता है। ब्राज़ील के रिओ डि जेनेरियो के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में साल 1992 में मीठे पानी के महत्व पर ध्यान केंद्रित…

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